शिमला नगर निगम बैठक में हंगामा !
मेयर-डिप्टी मेयर का कार्यकाल 5 साल करने का विरोध
हिमाचल में मेयर की कुर्सी बनी सियासत का मैदान !
कांग्रेस पार्षद भी सुक्खू सरकार के फैसले के खिलाफ
हिमाचल की सियासत में इन दिनों सबसे गर्म मुद्दा बनी है मेयर और डिप्टी मेयर की कुर्सी । जी हां, जब से सुक्खू सरकार ने मेयर और डिप्टी मेयर का कार्यकाल ढाई साल से बढ़ाकर 5 साल किया है, तबसे सियासी गलियारों में माहौल भट्ठी से भी ज्यादा गरम हो चुका है। जिसका नतीजा ये है कि सरकार के इस फैसले पर न सिर्फ विपक्ष भड़का है… बल्कि अब कांग्रेस के अपने ही पार्षद भी मैदान में उतर आए हैं।
आज शिमला नगर निगम की मासिक बैठक हुई, लेकिन जो नज़ारा वहां दिखा, वो किसी राजनीतिक ‘कुश्ती अखाड़े’ से कम नहीं था। भाजपा के पार्षदों ने तो सरकार पर हमला बोल ही दिया, लेकिन चौंकाने वाली बात यह रही — कांग्रेस के करीब एक दर्जन पार्षदों ने भी अपनों की सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। भाजपा ने नारे लगाए — ‘लोकतंत्र की हत्या बंद करो!’ तो वहीं कांग्रेस पार्षदों ने मौन रहकर कहा — हम भी असहमत हैं।
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कांग्रेस पार्षद ने तो साफ कह दिया — हम पार्टी के साथ हैं, लेकिन रोस्टर ढाई-ढाई साल का तय हुआ था, उसे बदलना गलत है। महिला पार्षदों की संख्या ज्यादा है, और मेयर की सीट महिला के लिए आरक्षित थी… तो आखिर महिलाओं के हक़ पर क्यों चोट की गई? मतलब साफ है — पार्टी लाइन एक तरफ, और ‘महिला अधिकार’* का झंडा दूसरी तरफ। इधर भाजपा को मौका मिल गया और उन्होंने सरकार को महिला विरोधी करार दे दिया। बैठक में हंगामा इतना बढ़ा कि मेयर सुरेंद्र चौहान और उनके समर्थक बैठक छोड़कर चले गए। भाजपा पार्षदों और मेयर के बीच तीखी नोकझोंक हुई, आवाज़ें ऊँची हुईं, मेज़ें ठोकी गईं — और माहौल किसी सियासी ‘सास-बहू’ सीरियल से भी ज्यादा ड्रामेटिक हो गया।
उधर भाजपा पार्षद चिल्ला रहे थे — मेयर का चुनाव दोबारा करवाओ!’ तो कांग्रेस के असंतुष्ट कह रहे थे — हम पार्टी विरोधी नहीं, लेकिन ये फैसला गलत है। अब सवाल उठ रहा है — क्या सुक्खू सरकार ने मेयर के कार्यकाल को पांच साल करके अपनी ही पार्टी में बगावत की आग जला दी? राजनीतिक विश्लेषक मान रहे हैं कि यह फैसला सुक्खू सरकार के लिए बड़ी सियासी भूल साबित हो सकता है। क्योंकि यहां विरोध सिर्फ विपक्ष का नहीं, बल्कि अपने ही पार्षदों का है जो अब खुले मंच से कह रहे हैं कि फैसला गलत है। दूसरी तरफ भाजपा को नया मुद्दा मिल गया है। उनका कहना है — सुक्खू सरकार लोकतांत्रिक नहीं, कुर्सी-प्रेमी सरकार बन चुकी है।
वहीं मेयर सुरेंद्र चौहान ने इस पूरे मामले पर कहा कि पार्षद सुर्खियों में बने रहने के लिए ये सब कर रहे हैं … हर सरकार अपने अपने हिसाब से एक्ट को संशोधित करती है .,,,,, सरकार ने अगर ये फैसला लिया है सोच समझ कर लिया होगा….
तो कुल मिलाकर, हिमाचल की राजनीति में ‘ढाई साल बनाम पांच साल’ की लड़ाई ने नया तूफ़ान खड़ा कर दिया है। नगर निगम की मीटिंग अब प्रशासनिक नहीं, बल्कि राजनीतिक रणभूमि बन गई है। खैर भाजपा पार्षदों और कांग्रेस के पार्षदों और मेयर का क्या कहना है वो सुनिए और फिर अपनी राय दिजिएगा –









